Sunday, May 16, 2010

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चिट्ठा (अंग्रेज़ी:ब्लॉग), बहुवचन: चिट्ठे (अंग्रेज़ी
:ब्लॉग्स), वेब लॉग (weblog) शब्द का सूक्ष्म रूप होता है। चिट्ठे एक प्रकार के व्यक्तिगत जालपृष्ठ (वेबसाइट) होते हैं जिन्हें दैनन्दिनी (डायरी) की तरह लिखा जाता है।[१] हर चिट्ठे में कुछ लेख, फोटो और बाहरी कड़ियां होती हैं। इनके विषय सामान्य भी हो सकते हैं और विशेष भी। चिट्ठा लिखने वाले को चिट्ठाकार तथा इस कार्य को चिट्ठाकारी अथवा चिट्ठाकारिता कहा जाता है। कई चिट्ठे किसी खास विषय से संबंधित होते हैं, व उस विषय से जुड़े समाचार, जानकारी या विचार आदि उपलब्ध कराते हैं। एक चिट्ठे में उस विषय से जुड़े पाठ, चित्र/मीडिया व अन्य चिट्ठों के लिंक्स मिल सकते हैं। चिट्ठों में पाठकों को अपनी टीका-टिप्पणियां देने की क्षमता उन्हें एक इंटरैक्टिव प्रारूप प्रदन प्रदान करती है।[२] अधिकतर चिट्ठे मुख्य तौर पर पाठ रूप में होते हैं, हालांकि कुछ कलाओं(आर्ट ब्लॉग्स), छायाचित्रों (फोटोग्राफ़ी ब्लॉग्स), वीडियो, संगीत (एमपी३ ब्लॉग्स) एवं ऑडियो (पॉडकास्टिंग) पर केन्द्रित भी होते हैं।

चिट्ठा बनाने के कई तरीके होते हैं, जिनमें सबसे सरल तरीका है, किसी अंतर्जाल पर किसी चिट्ठा वेसाइट जैसे ब्लॉग्स्पॉट या लाइवजर्नल या वर्डप्रेस आदि जैसे स्थलों में से किसी एक पर खाता खोल कर लिखना शुरू करना।[३]एक अन्य प्रकार की चिट्ठेकारी माइक्रोब्लॉगिंग कहलाती है। इसमें अति लघु आकार के पोस्ट्स होते हैं।
दिसंबर २००७ तक, ब्लॉग सर्च इंजिन टेक्नोरैटी द्वारा ११२,०००,००० चिट्ठे ट्रैक किये जा रहे थे।[४]
आज के कंप्यूटर जगत में ब्लॉग का भारी चलन चल पड़ा है। कई प्रसिद्ध मशहूर हस्तियों के ब्लॉग लोग बड़े चाव से पढ़ते हैं और उन पर अपने विचार भी भेजते हैं। चिट्ठों पर लोग अपने पसंद के विषयों पर लिखते हैं और कई चिट्ठे विश्व भर में मशहूर होते हैं जिनका हवाला कई नीति-निर्धारण मुद्दों में किया जाता है। ब्लॉग का आरंभ १९९२ में लांच की गई पहली वेबसाइट के साथ ही हो गया था। आगे चलकर १९९० के दशक के अंतिम वर्षो में जाकर ब्लॉगिंग ने जोर पकड़ा। आरंभिक ब्लॉग कंप्यूटर जगत संबंधी मूलभूत जानकारी के थे। लेकिन बाद में कई विषयों के ब्लॉग सामने आने लगे। वर्तमान समय में लेखन का हल्का सा भी शौक रखने वाला व्यक्ति अपना एक ब्लॉग बना सकता है, चूंकि यह निःशुल्क होता है, और अपना लिखा पूरे विश्व के सामने तक पहुंचा सकता है।
[२]
चिट्ठों पर राजनीतिक विचार, उत्पादों के विज्ञापन, शोधपत्र और शिक्षा का आदान-प्रदान भी किया जाता है। कई लोग चिट्ठों पर अपनी शिकायतें भी दर्ज कर के दूसरों को भेजते हैं। इन शिकायतों में दबी-छुपी भाषा से लेकर बेहद कर्कश भाषा तक प्रयोग की जाती है।वर्ष २००४ में ब्लॉग शब्द को मेरियम-वेबस्टर में आधिकारिक तौर पर सम्मिलित किया गया था। कई लोग अब चिट्ठों के माध्यम से ही एक दूसरे से संपर्क में रहने लग गए हैं। इस प्रकार एक तरह से चिट्ठाकारी या ब्लॉगिंग अब विश्व के साथ-साथ निजी संपर्क में रहने का माध्यम भी बन गया है। कई कंपनियां आपके चिट्ठों की सेवाओं को अत्यंत सरल बनाने के लिए कई सुविधाएं देने लग गई हैं।



सर्वप्रथम १९६२ में विश्वविद्यालय के जे सी आर लिकलिडर ने अभिकलित्र जाल तैयार किया था। वे चाहते थे कि अभिकलित्र का एक एसा जाल हो ,जिससे आंकड़ो, क्रमादेश और सूचनायें भेजी जा सके। 1966 में डारपा (मोर्चाबंदी प्रगति अनुसंधान परियोजना अभिकरण) (en:DARPA) ने आरपानेट के रूप में अभिकलित्र जाल बनायायह जाल चार स्थानो से जुडा था। बाद में इसमें भी कई परिवर्तन हुए और 1972 में बाँब काँहन ने अन्तर्राष्ट्रीय अभिकलित्र संचार सम्मेलन ने पहला सजीव प्रदर्शन किया। 1 जनवरी 1983 को आरपानेट (en:ARPANET) पुनर्स्थापित हुआ TCP-IP। इसी वर्ष एक्टीविटी बोर्ड (IAB) का गठन हुआ।नवंबर में पहली [[प्रक्षेत्र] नाम सेवा (DNS) पॉल मोकपेट्रीज द्वारा सुझाई गई अंतरजाल सैनिक और असैनिक भागों में बाँटा गया हालाँकि 1971 में संचिका अन्तरण नियमावली (FTP)विकसित हुआ, जिससे संचिका अन्तरण करना आसान हो गया 1990 मे टिम बेनर्स ली ने विश्वव्यापी जाल(WWW) से परिचित कराया
अमरीकी सेना की सूचना और अनुसंधान संबंधी आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए 1973 में ``यू एस एडवांस रिसर्च प्र्रोजेक्ट एजेंसी´´ ने एक कार्यक्रम की शुरुआत की। उस कार्यक्रम का उद्देश्य था कम्प्यूटरों के द्वारा विभिन्न प्रकार की तकनीकी और प्रौद्योगिकी को एक-दूसरे से जोड़ा जाए और एक `नेटवर्क´ बनाया जाए। इसका उद्देश्य संचार संबंधी मूल बातों ( कम्यूनिकेशन प्रोटोकॉल ) को एक साथ एक ही समय में अनेक कम्प्यूटरों पर नेटवर्क के माध्यम से देखा और पढ़ा जा सके। इसे ``इन्टरनेटिंग प्रोजेक्ट´´ नाम दिया गया जो आगे चलकर `इंटरनेट´ के नाम से जाना जाने लगा। 1986 में अमरीका की ``नेशनल सांइस फांउडेशन´´ ने ``एनएसएफनेट´´ का विकास किया जो आज इंटरनेट पर संचार सेवाओं की रीढ़ है। एक सैकण्ड में 45 मेगाबाइट संचार सुविधा वाली इस प्रौद्योगिकी के कारण `एनएसएफनेट´ बारह अरब -12 बिलियन- सूचना पैकेट्स को एक महीने में अपने नेटवर्क पर आदान-प्रदान करने में सक्षम हो गया। इस प्रौद्योगिकी को और अधिक तेज गति देने के लिए `नासा´ और उर्जा विभाग ने अनुसंधान किया और ``एनएसआईनेट´´ और `ईएसनेट´ जैसी सुविधाओं को इसका आधार बनाया।
इन्टरनेट हेतु `क्षेत्रीय´ सहायता कन्सर्टियम नेटवर्कों द्वारा तथा स्थानीय सहायता अनुसंधान व शिक्षा संस्थानों द्वारा उपलब्ध कराई जाती है। अमरीका में फेडरल तथा राज्य सरकारों की इसमें अहम भूमिका है परन्तु उद्योगों का भी इसमें काफी हाथ रहा है। यूरोप व अन्य देशों में पारस्परिक अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग व राष्ट्रीय अनुसंधान संगठन भी इस कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। 1991 के अन्त तक इन्टरनेट इस कदर विकसित हुआ कि इसमें तीन दर्जन देशों के 5 हजार नेटवर्क शामिल हो गए, जिनकी पहुंच 7 लाख कम्प्यूटरों तक हो गई। इस प्रकार 4 करोड़ उपभोक्ताओं ने इससे लाभ उठाना शुरू किया।
इन्टरनेट समुदाय को अमरीकी फेडरल सरकार की सहायता लगातार उपलब्ध होती रही क्योंकि मूल रूप से इन्टरनेट अमरीका के अनुसंधान कार्य का ही एक हिस्सा था। आज भी यह अमरीकी अनुसंधान कार्यशाला का महत्वपूर्ण अंग है किन्तु 1980 के दशक के अन्त में नेटवर्क सेवाओं व इन्टरनेट उपभोक्ताओं में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अभूतपूर्व वृद्धि हुई और इसका इस्तेमाल व्यापारिक गतिविधियों के लिये भी किया जाने लगा। सच तो ये है कि आज की इन्टरनेट प्रणाली का बहुत बड़ा हिस्सा शिक्षा व अनुसंधान संस्थानों एवं विश्व-स्तरीय निजी व सरकारी व्यापार संगठनों की निजी नेटवर्क सेवाओं से ही बना है।
[संपादित करें] इंटरनेट का तकनीकी विकास
पिछले 1८ सालों से इंटरनेट सहकारी पक्षों के बीच सहयोगी भूमिका निभाता चला आ रहा है। इंटरनेट के संचालन में कुछ बातें बहुत जरूरी हैं। इनमे से एक है प्रणाली को संचालित करने वाले प्रोटोकोल का निर्धारण। प्रोटोकोल का मूल विकास डीएआरपीए अनुंसधान कार्यक्रम में किया गया किन्तु पिछले 5-6 सालों में यह कार्य विभिन्न देशों की सरकारी एजेंसियों, उद्योगों व शैक्षिक समुदाय की सहायता से विस्तृत रूप से किया जाने लगा है। इंटरनेट समुदाय के सही मार्गदर्शन और टीसीपी/आईपी के समुचित विकास के लिये 1983 में अमरीका में इंटरनेट एक्टिविटीज बोर्ड का गठन किया गया।
इंटरनेट इंजीनियरिंग टास्क फोर्स तथा इंटरनेट रिसर्च टास्क फोर्स इसके दो महत्वपूर्ण अंग है। इंजीनियरिंग टास्क फोर्स का काम टीसीपी/आईपी प्रोटोकोल के विकास के साथ साथ अन्य प्रोटोकोल आदि का इंटरनेट में समावेश करना है। विभिन्न सरकारी एजन्सियों के सहयोग के द्वारा इंटरनेट एक्टीविटीज बोर्ड के मार्गदर्शन में नेटवर्किंग की नई उन्नतिशील परिकल्पनाओं के विकास की जिम्मेदारी रिसर्च टास्क फोर्स की है जिसमें वह लगातार प्रयत्नशील रहता है।
इस बोर्ड व टास्क फोर्स के नियमित संचालन के लिये सचिवालय का भी गठन किया गया है। इंजीनियरिंग टास्क फोर्स की मीटिंग औपचारिक रूप से चार महीने में एक बार होती ही है। इसके 50 कार्यकारी दल समय-समय पर `ई-मेल´ टेलीकान्फ्रेंसिग व रू-बरू मीटिगों द्वारा प्रगति की समीक्षा करते हैं। बोर्ड की मीटिंग भी तीन-तीन महीने में वीडियो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से और अनेेकों बार टेलीफोन, ई-मेल अथवा कम्प्यूटर कान्फ्रेसों के जरिये होती रहती है।
बोर्ड के दो और महत्वपूर्ण कार्य हैं - इंटरनेट संबन्धी दस्तावेजों का प्रकाशन और प्रोटोकोल संचालन के लिये आवश्यक विभिन्न आइडेन्टिफायर्स की रिकार्डिग। इंटरनेट के क्रमिक विकास के दौरान इसके प्रोटोकोल व संचालन के अन्य पक्षों को पहले `इंटरनेट एक्सपेरिमेंट नोट्स´ और बाद में `रिक्वेस्टस फॉर कमेंन्ट्स´ नामक दस्तावेजों के रूप में संग्रहीत किये जाते हैं। दस्तावेज इंटरनेट विषयक सूचना के मुख्य पुरालेख बन गये हैं।
आईडेन्टिफायर्स की रिकार्डिग `इंटरनेट एसाइन्ड नम्बर्स ऑथोरिटी´ उपलब्ध कराती है जिसने यह जिम्मेदारी एक `इंटरनेट रजिस्ट्री´ (आई आर) को दे रखी है। `इन्टरनेट रजिस्ट्री´ ही डोमेन नेम सिस्टम -डी एन एस- रूट डाटाबेस का केन्द्रीय रखरखाव करती है जिसके द्वारा डाटा अन्य सहायक `डी एन एस सर्वर्स´ को वितरित किया जाता है। इस प्रकार वितरित डाटाबेस का इस्तेमाल `होस्ट´ तथा `नेटवर्क´ नामों को उनके `एडडेसिज´ से कनैक्ट करने में किया जाता है। उच्चस्तरीय टीसीपी/आईपी प्रोटोकोल के संचालन में यह एक महत्वपूर्ण कड़ी है, जिसमें ई-मेल भी शामिल है । उपभोक्ताओं को दस्तावेजों, मार्गदर्शन व सलाह-सहायता उपलब्ध कराने के लिये समूचे इंटरनेट पर `नेटवर्क इन्फोरमेशन सेन्टर्स´ (सूचना केन्द्र)- स्थित हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जैसे-जैसे इंटरनेट का विकास हो रहा है ऐसे सूचना केन्द्रों की उच्चस्तरीय कार्यविधि की आवश्यकता भी बढ़ती जाती है।
आरम्भ में इंटरनेट उपभोगकर्ता समुदाय में जहां केवल कम्प्यूटर सांइस तथा इंजीनियरिंग श्रेणी के लोग ही हुआ करते थे, आज इसके उपभोक्ताओं में विज्ञान, कला, संस्कृति, सरकारी/गैर सरकारी प्रशासन व सैन्य-जगत के ही नहीं बल्कि कृषि एवं व्यापार जगत के लोग भी शामिल हो रहे हैं। ऐसा लगता है कि अब दुनिया के किसी भी हिस्से में रहने वाला कोई भी व्यक्ति `इंटरनेट´ के बिना अपने अस्तित्व की कल्पना कर सके।



मशीनी भाषा
मशीनी भाषा कंप्यूटर की आधारभुत भाषा है, यह केवल 0 और 1 दो अंको के प्रयोग से निर्मित श्रृंखला से लिखी जाती है। यह एकमात्र कंप्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा है जो कि कंप्यूटर द्वारा सीधे-सीधे समझी जाती है। इसे किसी अनुवादक प्रोग्राम का प्रयोग नही करना होता है। इसे कंप्यूटर का मशीनी संकेत भी कहा जाता है।
कंप्यूटर का परिपथ इस प्रकार तैयार किया जाता है कि यह मशीनी भाषा को तुरन्त पहचान लेता है और इसे विधुत संकेतो मे परिवर्तित कर लेता है। विधुत संकेतो की दो अवस्थाए होती है- हाई और लो अथवा Anticlock wise & clock wise, 1 का अर्थ है Pulse अथवा High तथा 0 का अर्थ है No Pulse या low।
मशीनी भाषा मे प्रत्येक निर्देश के दो भाग होते है- पहला क्रिया संकेत (Operation code अथवा Opcode) और दूसरा स्थिति संकेत (Location code अथवा Operand)। क्रिया संकेत कंप्यूटर को यह बताता जाता है कि क्या करना है और स्थिति संकेत यह बताता है कि आकडे कहां से प्राप्त करना है, कहां संग्रहीत करना है अथवा अन्य कोइ निर्देश जिसका की दक्षता से पालन किया जाना है।
[संपादित करें] मशीनी भाषा की विशेषताए
मशीनी भाषा मे लिखा गया प्रोग्राम कंप्यूटर द्वारा अत्यंत शीघ्रता से कार्यांवित हो जाता है। इसका मुख्य कारण यह है कि मशीनी भाषा मे दिए गए निर्देश कंप्यूटर सीधे सीधे बिना किसी अनुवादक के समझ लेता है और अनुपालन कर देता है।
[संपादित करें] मशीनी भाषा की परिसीमाएं
मशीनी भाषा कंप्यूटर के ALU (Arithmatic Logic Unit) एवं Control Unit के डिजाइन अथवा रचना, आकार एवं Memory Unit के word की लम्बाई द्वारा निर्धारित होती है। एक बार किसी ALU के लिये मशीनी भाषा मे तैयार किये गए प्रोग्राम को किसी अन्य ALU पर चलाने के लिये उसे पुन: उस ALU के अनुसार मशीनी भाषा का अध्ययन करने और प्रोग्राम के पुन: लेखन की आवश्यकता होती है।
मशीनी भाषा मे प्रोग्राम तैयार करना एक दुरूह कार्य है। इस भाषा मे प्रोग्राम लिखने के लिये प्रोग्रामर को मशीनी निर्देशो या तो अनेकों संकेत संख्या के रूप मे याद करना पडता था अथवा एक निर्देशिका के संपर्क मे निरंतर रहना पडता था। साथ ही प्रोग्रामर को कंप्यूटर के Hardware Structure के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी भी होनी चाहिये थी।
विभिन्न निर्देशो हेतु चूंकि मशीनी भाषा मे मात्र दो अंको 0 और 1 की श्रृंखला का प्रयोग होता है। अत: इसमे त्रुटि होने की सम्भावना अत्यधिक है। और प्रोग्राम मे त्रुटि होने पर त्रुटि को तलाश कर पाना तो भुस मे सुइ तलाशने के बराबर है।
मशीनी भाषा मे प्रोग्राम लिखना एक कठिन और अत्यधिक समय लगाने वाला कार्य है। इसीलिये वर्तमान समय मे मशीनी भाषा मे प्रोग्राम लिखने का कार्य नगण्य है।


असेम्बली भाषा
मशीनी भाषा द्वारा प्रोग्राम तैयार करने मे आने वाली कठिनाईयो को दूर करने हेतु कम्प्यूटर वैज्ञानिको ने एक अन्य कम्प्यूटर प्रोग्राम भाषा का निर्माण किया। इस कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा को असेम्बली भाषा कहते है। कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा के विकास का पहला कदम यह था कि मशीनी भाषा को अंकीय क्रियांवयन संकेतो के स्थान पर अक्षर चिन्ह स्मरणोपकारी का प्रयोग किया गया। स्मरणोपकारी का अर्थ यह है कि -एसी युक्ति जो हमारी स्मृति मे वर्ध्दन करें। जैसे घटाने के लिये मशीनी भाषा मे द्विअंकीय प्रणाली मे 1111 और दशमलव प्रणाली मे 15 का प्रयोग किया जाता है, अब यदि इसके लिये मात्र sub का प्रयोग किया जाए तो यह प्रोग्रामर की समय मे सरलता लाएगी।
पारिभाषिक शब्दो मे, वह कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा जिसमे मशीनी भाषा मे प्रयुक्त अंकीय संकेतो के स्थान पर अक्षर अथवा चिन्हो का प्रयोग किया जाता है, असेम्बली भाषा अथवा symbol language कहलाती है।असेम्बली भाषा मे मशीन कोड के स्थान पर ’नेमोनिक कोड’ का प्रयोग किया गया जिन्हे मानव मस्तिष्क आसानी से पहचान सकता था जैसे-LDA(load),Tran(Translation),JMP(Jump) एवं इसी प्रकार के अन्य नेमोनिक कोड जिन्हे आसानी से पहचाना व याद रखा जा सकता था। इनमे से प्रत्येक के लिये एक मशीन कोड भी निर्धारित किया गया,पर असेम्बली कोड से मशीन कोड मे परिवर्तन का काम, कम्प्यूटर मे ही स्थित एक प्रोग्राम के जरिये किया जाने लगा,इस प्रकार के प्रोग्राम को असेम्बलर नाम दिया गया। यह एक अनुवादक की भांति कार्य करता है।
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] असेम्बली भाषा की विशेषताएं
(१)नेमोनिक कोड और आकडो हेतु उपयुक्त नाम के प्रयोग के कारण इस प्रोग्रामिंग भाषा को अपेक्षाकृत अधिक सरलता से समझा जा सकता है।(२)इस प्रोग्रामिंग भाषा मे कम समय लगता है।(३)इसमे गलतियो को सरलता से ढूंढकर दूर किया जा सकता है।(४)इस प्रोग्रामिंग भाषा मे मशीनी भाषा की अनेक विशेषताओ का समावेश है।
[संपादित करें] असेम्बली भाषा की परिसीमाए
(१)चूंकि इस प्रोग्रामिंग भाषा मे प्रत्येक निर्देश चिन्हो एवं संकेतो मे दिया जाता है और इसका अनुवाद सीधे मशीनी भाषा मे होता है अत: यह भाषा भी हार्डवेयर पर निर्भर करती है। भिन्न ALU एवं Controling Unit के लिये भिन्न प्रोग्राम लिखना पडता है।(२)प्रोग्राम लिखने के लिये प्रोग्रामर को हार्डवेयर की सम्पूर्ण जानकारी होनी आवश्यक है।



उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा
मशीनी भाषा और असेम्बली भाषा द्वारा क्रमादेश तैयार करने मे आने वाली कठिनाई को देखते हुए कम्प्यूटर वैज्ञानिक इस शोध मे जुट गए कि अब इस प्रकार की क्रमादेशन भाषा तैयार की जानी चाहिये जो कि कम्प्यूटर मशीन पर निर्भर न हो। कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग भाषा के विकास का यह अगला कदम था। असेम्बलर के स्थान पर कम्पाइलर और इन्टरप्रेटर का विकास किया गया।अब कम्प्यूटर प्रोग्राम लिखने के लिये मशीनी भाषा को अंकीय क्रियान्वयन संकेतो के स्थान पर अक्षर चिन्ह स्मरणोपकारी का प्रयोग किया गया।कम्प्यूटर मे प्रयोग की जाने वाली वह भाषा जिसमे अंग्रेजी अक्षरो,संख्याओ एवं चिन्हो का प्रयोग करके प्रोग्राम लिखा जाता है, उसे उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा कहा जाता है।इस भाषा मे प्रोग्राम लिखना प्रोग्रामर के लिये बहुत ही आसान होता है,क्योंकि इसमे किसी भी निर्देश मशीन कोड मे बदलकर लिखने की आवश्यकता नही होती । जैसे -BASIC, COBOL,FORTRAN,PASCALअब तो उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओ का अत्यन्त विकास हो चुका है। इन प्रोग्रमिंग भाषाओ को कार्यानुसार चार वर्गो मे विभाजित किया गया है-(१) वैज्ञानिक प्रोग्रामिंग भाषाएं- इनका प्रयोग मुख्यत: वैज्ञानिक कार्यो के लिये प्रोग्राम बनाने मे होता है,परन्तु इनमे से कुछ भाषाएं ऎसी भी होती है जो वैज्ञानिक कार्यो के अलावा अन्य कार्यो को भी उतनी ही दक्षता से करती है।जैसे-ALGOL(Algorithmic language),BASIC,PASCAL,
FORTRAN, आदि है।(२) व्यवसायिक प्रोग्रामिंग भाषाएं-व्यापारिक कार्यो से सम्बंधित जैसे-बही खाता, रोजानामचा, स्टाक आदि का लेखा जोखा आदि व्यापारिक प्रोग्रामिंग भाषाओ के प्रोग्राम द्वारा अत्यन्त सरलता से किया जा सकता है।जैसे-PL1(Programing language 1),COBOL, DBASE आदि। (३) विशेष उद्देश्य प्रोग्रामिंग भाषाएं-ये भाषाएं विभिन्न कार्यो को विशेष क्षमता के साथ करने के लिये प्रयोग की जाती है।जैसे-(अ)APL360- पेरीफिरल युक्तियां सर्वश्रेष्ठ अनुप्रयोग हेतु प्रयोग की जाती है। यह भाषा 1968 से प्रचलन मे आई।(ब)LOGO- लोगो का विकास मात्र कम्प्यूटर शिक्षा को सरल बनाने हेतु किया गया। इस भाषा मे चित्रण इतना सरल है कि छोटे बच्चे भी चित्रण कर सकते है।लोगो भाषा मे चित्रण के लिये एक विशेष प्रकार की त्रिकोणाकार आकृति होती है जिसे टरटल कहते है। मॉनीटर पर प्रदर्शित रहता है लोगो भाषा के निर्देशो द्वारा यह टरटल, किसी भी तरफ घूम सकता है और आगे-पीछे चल सकता है। जब टरटल चलता है तो पीछे अपने मार्ग पर लकीर बनाता चलता है। इससे अनेक प्रकार के चित्रो को सरलता से बनाया जा सकता है।(४) बहुउद्देशीय भाषाएं- जो भाषाएं समान रूप से भिन्न-भिन्न प्रकार के अनेक कार्यो को करने की क्षमता रखती है, उन्हे बहुउद्देशीय भाषाएं कहते है।जैसे- BASIC,PASCAL,PL1
[संपादित करें] उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा की विशेषताएं
(१) उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाए कम्प्यूटर मशीन पर निर्भर नही करती। यह एक अत्यन्त महत्वपूर्ण उपलब्धि है। प्रोग्राम के प्रयोगकर्ता के कम्प्यूटर बदलने पर अर्थात विभिन्न ALU और Control unit मे भी यह प्रोग्राम सूक्ष्मतम सुधार के बाद समान रूप से चलता है।(२)इन भाषाओ मे प्रयोग किये जाने वाले शब्द सामान्य अंग्रेजी भाषा मे होते है।(३)इन प्रोग्रामिंग भाषाओ मे गलतियो की सम्भावना कम होती है तथा गलतियो को जल्द ढूंढकर सुधारा जा सकता है।प्रयोग किया गया अनुवादक कम्पाइलर अथवा इन्टरप्रेटर प्रोग्राम मे किस लाइन और निर्देश मे गलती है यह स्वयं ही सूचित कर देता है।
(४) प्रोग्राम लिखने मे कम समय और श्रम लगता है।
[संपादित करें] उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा की परिसीमाएं
(१)इन भाषाओ मे लिखा गया प्रोग्राम चलने मे मशीनी भाषा और असेम्बली भाषा मे लिखे गये प्रोग्राम की अपेक्षा कम्प्यूटर की मुख्य स्मृति मे अधिक स्थान घेरता है।(२)इन भाषाओ मे लचीलापन नही होता है अनुवादको के स्वयं नियन्त्रित होने के कारण यह प्रोग्रामर के नियन्त्रण मे नही होता है। लचीलेपन से तात्पर्य है कि कुछ विशेष कार्य इन प्रोग्रामिंग भाषाओ मे नही किए जा सकते है अथवा अत्यन्त कठिनाई से साथ किए जा सकते है। फिर भी उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषा की विशेषताएं उसकी परिसीमाओ की अपेक्षा अधिक प्रभावी होती है। अत: वर्तमान मे यही भाषाएं प्रयोग की जाती है।
[संपादित करें] उच्च स्तरीय भाषाओ का परिचय
प्रोग्रामिंग भाषाओ के विकास के इतिहास पर नजर डाली जाए तो डॉ. ग्रेस हापर का नाम महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इन्होने ही सन 1952 के आस-पास उच्च स्तरीय भाषाओ का विकास किया था। जिसमे एक कम्पाइलर का प्रयोग किया गया था। डॉ हापर के निर्देशन मे दो उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओ को विकसित किया गया पहली-FLOWMATIC और MATHEMATICS। FLOWMATIC एक व्यवसायिक प्रोग्रामिंग भाषा थी और MATHEMATICS एक अंकगणितीय गणनाओ मे प्रयुक्त की जाने वाली भाषा। तब से लेकर अब तक लगभग 225 उच्च स्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाओ का विकास हो चुका है। उदाहरण:FORTRAN, COBOL, BASIC, PASCAL।

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